भगवान यमराज के जन्म दिन पर
लगा हुआ था दरबार
मृत्युलोक से आयी हुई तीन आत्माएँ
कर रही थी भाग्य निर्णय का इन्तजार
एक सेठ ,एक जौहरी ,और एक चोर
यमराज प्रभु मुखातिब हुए चित्रगुप्त की ओर
आज खुशी का दिन है ,गुप्ता जी ,
सबकी इच्छा पूर्ण करेगें
पापी हो ,अपराधी हो ,या धर्मात्मा
जो माँगेगा ,वही उसको देंगे ।
सेठ ने कहा ,
यमराज मै दस लाख की
संपति छोड़कर आया हूँ ,
पुनर्जन्म में इससे दस गुनी मिल जाये
तो करोड़पति हो जाऊँ ।
“तथास्तु ” कह प्रभु ने दृष्टि घुमायी
अब जौहरी की बारी आयी
“मै अधिक नहीं चाहता श्रीमान ‘हीरा मोती जवाहरात से भरी हुई
मिल जाये वही पुरानी दुकान । “
“तथास्तु ” बोलकर अंत में पूछा चोर से
“तू क्या चाहता है ,वत्स ?
“मै कुछ नहीं चाहता ,प्रभु बस इतनी कृपा कीजिए
मुझे इन दोनों के पूरे पते बता दीजिए । “
एक भारतीय की मेहबूबा
ओ मेरी मेहबूबा तुम्हारे नापाक इरादों
जमाखोर वायदों बेईमान निगाहों
और तस्करी अदाओं ने मेरा बजट बिगाड़ दिया
मेरा घर उजाड़ दिया । खूबसूरती का ठेका लेकर
हजारों दिलो का कर लिया गबन प्यार का पुल
कमजोर बुनियादों पर खड़ा करके
हँस रही हो जानेमन ।
दुकान के आगे बढ़ाये गये शोकेस -सा
अपना घूँघट हटा लो अवैध कब्जा करने की प्रवृति सी
अपनी अंगड़ाई संभालो ।
भाव तुम बढ़ती रही ,नखरीली शान से
मुनाफा कमाती रही इस गरीब इन्सान से ,
बैठा हूँ लूटा हुआ । तुम्हारी मिलावटी मुस्कान से ।
अपने उपभोक्ता को मरने से बचा लो ,
आज तो होठों पर रेटलिस्ट लगा लो ।
दूर करो नशा
छोड़िए नशा अब ,तन का रखिए ध्यान
तुम्हारा भी हित होगा ,होगा भारत का कल्याण
नशा तो ऐसी चीज है ,जो करता है नशा
तन भी बस में ना रहे ,लोग करे उपहास
लोग करे उपहास ,नशे को दूर भगाओ
कठिन परिश्रम के बल पर भारत मे एकता लाओ
दूर करो नसे की आदत को मत कुपात्र कहलाओ
होली आई होली को होली की भाति मनाओ