
बादशाह अकबर के साले साहब ने एक बार फिर से स्वयम को दीवान बनाने की
जिद्द की | अब बादशाह सीधे – सीधे तो साले साहब को इंकार कर नहीं सकते थे
सो उन्होने फिर एक शर्त रखा और कहा ठीक है , मैं तुम्हें दीवान बना दूंगा |
पहले तुम्हें एक काम करना होगा , यहलो तीन रुपये और इससे तीन चीजें
खरीदना | हर चीज एक रुपये की हो और पहली चीज वहाँ की हो ,दूसरी
यहाँ की और तीसरी न यहाँ की हो और न वहाँ की | साले साहब तीन रूपए
लेकर बाजार चले गए |उसने बहुत कोशिश की पर उसे यह तीनों चीजें कहीं
न मिलीं |थक – हार कर वह दरबार में लौट आया और कहा – हुजूर , आप हर
बार मुझे जान – बूझकर मुश्किल काम सौंपते हैं , ताकि मैं दीवान बन नहीं
सकूँ साले साहब ! काम कोई मुश्किल नहीं होता , बस काम को करने की
लगन होनी चाहिए | यही काम मैं अब बीरबल को सौंपता हूँ , देखना वह जरूर कही
जो अपने साले साहब से कही थी |बीरबल बाजार गया और कुछ देर बाद लौटा
तो बादशाह ने पूछा – कहो बीरबल कुछ मिला ? जी हुजूर , पहले मैंने एक
रुपया फकीर को दान दिया और पुण्य खरीद लिया , इससे वहाँ की चीज मिल गई
दूसरे रुपए को मैंने खाने – पीने मे खर्च किया जो यहाँ की चीज थी और तीसरा
रुपया मैंने जुआ खेलने में गंवा दिया जो न यहाँ काम आया और न वहाँ | बीरबल
ने जवाब दिया | देखा साले साहब , इसे कहते हैं अक्लमंदी | तभी तो बीरबल ही
मुझे दीवान के रूप मे पसंद हैं साले साहब शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे |
साले की जिद्द